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Wednesday, January 4, 2012

माकपा का छत्तीसगढ़ राज्य सम्मेलन


स्थानीय मुद्दों पर संघर्ष विकसित कर हर स्तर पर ठहराव को तोडऩे का आह्वान

अंबिकापुर। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का चतुर्थ राज्य सम्मेलन 15 से 17 दिसंबर 2011 को अंबिकापुर में संपन्न हुआ । सम्मेलन ने स्थानीय मुद्दों पर संघर्ष विकसित कर हर स्तर पर ठहराव को तोडने का आव्हान किया । सम्मेलन में केन्द्र व राज्य सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ संघर्ष विकसित करने के साथ-साथ पार्टी के विस्तार की योजनाओं को भी अंतिम रूप दिया गया । सम्मेलन के प्रथम दिन अंबिकापुर में कंपनी बाजार मैदान से एक विशाल रैली निकाली गई । यह रैली नगर भ्रमण के पश्चात् कलानिकेतन मैदान में आमसभा में परिवर्तित हो गई, रैली में सैकडों की संख्या में सरगुजा जिले के आदिवासी, महिलायें व किसान शामिल थे । रैली की अगुवाई सरगुजा के आदिवासी नर्तक दल के कलाकार कर रहे थे । आमसभा को संबोधित करते हुये मुख्य वक्ता पार्टी के केन्द्रीय सचिव मंडल सदस्य काम. हन्नान मुल्ला ने केन्द्र व राज्य सरकार के जनविरोधी नीतियों की कडी आलोचना की और कहा कि इन नीतियों की वजह से कृषि की लागत बढ रही है, किसानों को उपज का वाजिब दाम नहीं मिल रहा है और जय जवान-जय किसान का नारा लगाने वाले देश में किसान आत्महत्या के लिये मजबूर हैं । उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ हो या पूरा देश सरकारी जमीन की कमी नहीं है और कई किसान भूमिहीन है इसलिये भूमिहीनों को यह जमीन बांटी जानी चाहिये और भूमि सुधार कानून को लागू किया जाना चाहिये । उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ एक आदिवासी बहुल राज्य है लेकिन यहां आदिवासी अपने अधिकार से वंचित हैं उन्हें वन अधिकार कानून के तहत् पट्टा भी प्राप्त नहीं हुआ है । राज्य में भ्रष्टाचार का बोलबाला है और जनता सरकारी योजनाओं के लाभों से भी वंचित है । उन्होंने वर्तमान केन्द्र सरकार को भ्रष्टतम सरकार की संज्ञा देते हुये कहा कि इस सरकार ने भ्रष्टाचार के सारे रिकार्ड को तोड दिये । विशेष अतिथि पार्टी के केन्द्रीय सचिव मंडल सदस्य का. जोगेन्द्र 'शर्मा ने आमसभा को संबोधित करते हुये छत्तीसगढ में आदिवासियों, दलितों पर अत्याचार और रोजगार गारंटी कानून के क्रियान्वयन में भारी भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुये रमन सरकार को आडे हाथों लिया । आमसभा को आदिवासी एकता महासभा के महासचिव काम. बाल सिंह, 'पार्टी के सरगुजा जिला सचिव काम. अशोक सिन्हा, सचिव मंडल सदस्य काम. बी. सान्याल व राज्य सचिव काम. एम.के. नंदी ने भी संबोधित किया । इस दौरान पार्टी राज्य सचिव मंडल सदस्य काम. धर्मराज महापात्र, का. वकील भारती, का. संजय पराते, का. जे.एस.सोढी भी उपस्थित थे । इस आमसभा की अध्यक्षता राज्य सचिव मंडल सदस्य व सरगुजा जिला सचिव काम. अशोक सिन्हा ने किया ।

पार्टी राज्य समिति के सदस्य व वयोवृद्ध आदिवासी नेता काम. रूपधर ध्रुव ने पार्टी का झंडा फहराकर सम्मेलन के विधिवत शुरूआत की । इसके पश्चात् शहीद बेदी पर अतिथियों व प्रतिनिधियों द्वारा पुष्प अर्पित कर अमर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई । सम्मेलन का विधिवत् उद्घाटन करते हुये मुख्य अतिथि केन्द्रीय सचिव मंडल सदस्य काम. हन्नान मुल्ला ने प्रदेश में पार्टी के विस्तार की संभावनाओं के अनुरूप पार्टी संगठन व जन संगठन की कार्यप्रणाली में बदलाव का आव्हान किया । उन्होंने शाखाओं को सक्रिय करने के साथ-साथ प्रत्येक पार्टी सदस्यों को सक्रिय बनाने उन्हें शिक्षित करने व नये पूर्णकालिक कार्यकर्ता विकसित करने व उनकी देखभाल के लिये उचित इंतजाम करने योजनाबद्ध पहल का आव्हान किया । इसके बाद राज्य समिति की ओर से काम. एम.के. नंदी ने राजनैतिक, सांगठनिक रिपोर्ट पेश किया जिस पर 61 साथियों ने अपने विचार रखे । सम्मेलन में समापन उद्बोधन देते हुये पार्टी के केन्द्रीय सचिव मंडल सदस्य काम. जोगेन्द्र शर्मा ने पार्टी सदस्यता व जनसंगठनों की सदस्यता में ठहराव तोडने का आव्हान करते हुये 'शाखाओं को सक्रिय करने, प्रत्येक पार्टी सदस्य को जनसंगठनों की जवाबदारी देने, कमेटी के सदस्यों के मध्य उचित कार्यविभाजन किये जाने तथा स्थानीय मुद्दों पर समस्या के समाधान तक निरंतर संघर्ष चलाने पर जोर दिया । सम्मेलन में विस्तृत चर्चा के बाद यह निर्णय लिया गया कि प्रदेश में स्थानीय मुद्दों को लेकर संघर्ष विकसित किया जायेगा, अनुसूचित जाति तथा जनजाति व महिलाओं पर अन्याय तथा जातिगत व सांप्रदायिक घृणा के खिलाफ संघर्ष विकसित किया जायेगा । प्रदेश में वामपंथी व जनवादी ताकतों को मजबूत बनाया 'जायेगा, भूमि के सवाल पर गरीब किसानों, रोजगार के मुद्दे पर युवाओं व असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को संगठित करने तथा रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी, सडक जैसे सवालों के साथ-साथ रोजगार गारंटी योजना व वनाधिकार कानून के क्रियान्वयन को लेकर संघर्ष विकसित किया जायेगा । सम्मेलन में आदिवासी, दलितों, महिलाओं, अल्पसंख्यकों के उत्पीडन के खिलाफ, उदारीकरण की नीतियों के खिलाफ, केन्द्र व राज्य सरकार के जनविरोधी नीतियों के खिलाफ, वामपंथ पर हमले के खिलाफ 28 फरवरी, 2012 के राष्ट्रव्यापी हडताल को सफल बनाने व जनजाति की अनुसूची में विसंगति दूर कर सरगुजा, बलरामपुर व सूरजपुर जिले में भू राजस्व संहिता की धारा 165 की उपधारा 6 के अंतर्गत अनुसूची में क्रमांक 32 में नगेसिया के पश्चात् उसमें संशोधन कर नगेसिया किसान जोडने पहल किये जाने की मांग का प्रस्ताव पारित करते हुये इन मुद्दों पर सतत् संघर्ष संगठित करने का आव्हान किया । सम्मेलन में छात्र-युवा मोर्चा, किसान मोर्चा व टेऊड यूनियन मोर्चे की सदस्यता में बढ़ोतरी के साथ-साथ पार्टी के केन्द्रीय मुखपत्र की संख्या में भी बढोतरी तथा हर स्तर पर शिक्षण शिविर आयोजित करने का निर्णय लिया गया । सम्मेलन में सर्वसम्मति से 22 सदस्यीय नई राज्य समिति जिसमें काम. एम.के.नंदी, का. बी.सान्याल, का.संजय पराते, का. धर्मराज महापात्र, वकील भारती, जे.एस.सोढी, अशोक सिन्हा, ए.के.लाल, एम.के.चंदा, लल्लन सोनी, आर. भारती, एस.एन.बैनर्जी, बासुदेव दास, बाल सिंग, रूपधर ध्रुव, एस.आर. नंदी, ऋषि गुप्ता, सपूरन कुलदीप, शांत कुमार, नजीब कुरैशी का चुनाव किया । नई राज्य समिति ने अपनी पहली बैठक में काम. एम.के. नंदी को नया राज्य सचिव चुना। राज्य समिति ने निर्णय लिया कि आगामी बैठक में सचिव मंडल का निर्वाचन किया जायेगा तथा तब तक निवृत्तमान सचिवमंडल कार्य करता रहेगा । सम्मेलन में पार्टी के अखिल भारतीय कांग्रेस के लिये सर्वसम्मति से 4 प्रतिनिधियों का. एम.के. नंदी, का. बी.सान्याल, का. धर्मराज महापात्र तथा काम. बाल सिंग व वैकल्पिक प्रतिनिधि के रूप में काम. धान बाई, का. एम.के. चंदा व का. गजेन्द्र झा चुने गये । राज्य समिति में 1 स्थान बिलासपुर तथा 1 अन्य के लिये रिक्त रखा गया ।

धर्मराज महापात्र की रिपोर्ट

Friday, February 26, 2010

और फिर प्राण को दादा साहेब एवार्ड नहीं मिला....


इस 12 फरवरी को प्राण साहब 90 के हो गए.उनके जन्मदिन से पहले दादा साहेब पुरस्कारों की घोषणा हुई.लेकिन सिनेमा में अविस्मरणीय योगदान दिये जाने वाले दादा साहेब फाल्के पुरस्कार के लिए उन्हें इस बार भी योग्य नहीं समझा गया. जिस कलाकार ने अपने जीवन के करीब 70 साल इस इंडस्ट्री को दे दिए. उस इंडस्ट्री ने उनके 70 साल के योगदान को आज तक नहीं नवाज़ने की ज़रूरत नहीं समझी. याद रखने वाली बात ये है कि उनकी उम्र 90 बरस की है. यानी ज़िदगी में शुरूआत के केवल 20 साल -जब वे बड़े हो रहे थे- को छोड़ दिया जाए तो उनका पूरा जीवन फिल्मी इंडस्ट्री को समर्पित रहा है.

चालीस साल हो गए। प्राण को फिल्मों में खलनायकी छोड़े। पर आज भी भारतीय सिनेमा में खलनायक का ज़िक्र आता है तो ज़ेहन में जो पहला नाम आता है। वो प्राण का ही है। ये उनके अभिनय का जादू नहीं तो और क्या है. किरदार चाहे जैसा भी हो। संवाद अदायगी का खास अंदाज़, होंठों पर तैरने वाली कुटिल मुस्कान और अलग-अलग गेटअप के साथ प्राण ने उसे कुछ इस तरह पेश किया कि किरदार जीवंत और यादगार हो गया। हिंदी फिल्मों में खलयानकी के ज़रिए प्राण ने अभिनय को एक नई ऊंचाई बख़्शी। प्राण ने फिल्मी दुनिया में उस वक्त कदम रखा जब भारतीय सिनेमा अपनी पहचान बना रही थी।

1940 वो साल जब प्राण का सिनेमाई सफर शुरू हुआ.शुरूआत की पंजाबी फिल्मों से. यमला जट नाम की पंजाबी फिल्म में उन्होंने खलनायक की भूमिका अदा की थी. उस वक्त वे लाहौर में रहकर काम करते थे. इसके दो साल के बाद सिल्वर स्क्रीन पर वो नायक बनकर उतरे। फिल्म थी खानदान। इस फिल्म में उनके अपोज़िट थी नूरजहां। तब नूरजहां की उम्र महज़ 13-14 साल ही थी. फिल्म हिट रही. इसके बाद उनके पीछे निर्माताओं की लाइन लग गई. उन्हें फिल्मों में नायक की भूमिकाएं मिलने लगी पर नायक की भूमिकाएं उनको ज्यादा रास नहीं आ रही थी। इसकी वजह थी नायक के पास अभिनेता के तौर पर करने के लिए ज्यादा कुछ होता नहीं था। सिर्फ हिरोईन के साथ पेड़ के इर्द गिर्द चक्कर लगाने और नाच-गाने के अलावा। लिहाज़ा उन्होंने फिर से खलनायकी शुरू की. उनका करियर धूम-धड़ाके के साथ आगे बढ़ ही रहा था कि देश को विभाजन की त्रासदी झेलनी पड़ी और वो लाहौर से मुंबई आ गए. छै महीने तक मुफलिसी और संघर्ष के दौर के बाद प्राण को काम मिला देवानंद और कामिनी कौशल की फिल्म ज़िद्दी में. उनका शानदार अभिनय देखकर हिंदी फिल्मों के निर्देशक दंग रह गए. इसके बाद तो उनके पीछे निर्माता-निर्देशकों की लाइन लग गई.
पचास और साठ के दशक के आते-आते प्राण हिंदी फिल्मों में खलनायकी के पर्याय बन चुके थे. उनका निभाया हर किरदार लोगों के दिलों में खौफ बनकर बैठ जाता था. किरदार की जीवतंता ऐसी कि असल ज़िंदगी में भी लोग प्राण से डरते थे. वे जहां भी जाते, लोग उनसे कन्नी काट लेते थे. एक बार उन्हें दिल्ली में अपने किसी दोस्त के घर चाय के लिए बुलाए गए। जब वे उस दोस्त के घर पहुंचे तो उसकी बहन उन्हें देखते ही वहां से खिसक ली। बाद में उनके मित्र ने फोन पर उन्हें बताया कि उसकी बहन उससे लड़ रही थी कि वह इतने बुरे आदमी को घर में क्यों लेकर आए. पचास के दशक के बाद आलम ये था कि लोगों ने अपने बच्चों के नाम प्राण रखना बंद कर दिया.
उस दौर में देवानंद की शोहरत का मुकाबला सिर्फ प्राण ही कर सकते थे. फर्क सिर्फ इतना है ये शोहरत देवानंद को प्यार के रूप में मिली तो प्राण को नफरत के रूप में. कहा जाता है कि देवानंद जहां भी जाते थे लड़कियां उन्हें घेर लेती थी और उनकी एक झलक पाने के लिए छत से भी कुदने को तैयार रहती थीं. ठीक उसी तरह प्राण जहां जाते थे लोग रास्ता बदल लेते थे या दांये-बाएं होकर खिसक लेते थे. गौरतलब बात है कि देवानंद को यह लोकप्रियता सिर्फ अभिनय के बूते नहीं बल्कि अपनी खूबसूरती और खास अंदाज़ की बदौलत भी मिली. जबकि प्राण ने ये लोकप्रियता सिर्फ अपने अभिनय के दम पर हासिल किया. प्राण की ये नकारात्मक लोकप्रियता विश्व सिनेमा के इतिहास में अद्वितीय है. यह भारत ही नहीं दुनिया के सिनेमा के इतिहास में बदनामी से मिली शोहरत की ऐसी मिसाल थी जिसे कोई भी कलाकार नहीं दोहरा पाया.
प्राण की इस कामयाबी के पीछे था अभिनय के प्रति उनका जबरदस्त समर्पण और लगाव . ये समर्पण इतना गहरा था पंजाबी फिल्मों में नायक के तौर पर स्थापित होने के बाद भी चैलेंजिंग रोल की खातिर उन्होंने खलनायकी का रूख किया. गौरतलब है कि हिंदी फिल्मों में ऐसा करने का साहस नायकों में उनके साठ साल के बाद आया(21 सदी में ही हिंदी फिल्मों के नायकों ने पूरी तरह से खलनायक बनने का जोखिम उठाया).
प्राण उन कलाकारों में शुमार किए जाते हैं जो चरित्र पर कैमरे से ज्यादा कैमरे पर आने से पहले मेहनत पर यकीन करता थे. पात्र के मुताबिक संवाद, वेशभूषा, गेटअप और उसे नया रंग देने के लिए वह बकायदा कई-कई दिनों तक सिर्फ अध्ययन करते थे और उसी के मुताबिक अपना मैनरिज्म विकसित करते थे. हर चरित्र के हिसाब से खुद को ढालना प्राण की खास पहचान रही है. हर बार उनका गेट अप और बोलने का अंदाज अलग होता था.
खास गेटअप के लिए वे अखबारों से तस्वीरें काटकर रख लिया करते थे. बाद में कोई पात्र उन्हें निभाना होता था तो वे पात्र के मुताबिक फोटो निकालते थे और फोटो देखकर कभी उसकी हेयरस्टाइल , मूंछें, या वेशभूषा को एडॉप्ट करते थे. यही वजह है कि हर फिल्म में उनका अलग मैनरिज़्म होता था, अलग संवाद अदायगी होती थी. फिल्मों में उनके द्वारा अपनाए गए स्टाइल भी खासे लोकप्रिय होते थे. ये उनके अभिनय का तिलस्म ही था कि खलनायक होने के बाद भी दशर्कों ने उनके स्टाइल को अपनाया. उनकी हेयर स्टाइल,सिगरेट पीने का अंदाज़, चलने बोलने का तरीका खूब लोकप्रिय हुआ. प्राण शायद पहले खलनायक थे जिनकी क्रूरता और घटियापन में भी एक किस्म का आकर्षण रहता था.
खलनायक के तौर पर अपने झंडे गाड़ने के बाद उन्होंने एक बार अपनी रची खलनायक की इमेज तोड़ दी. इस बार उन्होंने ये काम मनोज कुमार की फिल्म उपकार के ज़रिए किया. एक फिल्म से ही हिंदी फिल्मों का ये सबसे बड़ा खलनायक से मलंग चाचा बन गया. इसके बाद उन्होंने कई यादगार चरित्र भूमिकाएं निभाईं. सत्तर के दशक के बाद प्राण की अमिताभ के साथ जोड़ी काफी हिट रही थी. वे कभी अमिताभ के दोस्त बनते तो कभी पिता. स्क्रीन पर जब भी इन दो महान हस्तियों का आमना-सामना हुआ वो सीन यादगार बन गया. चाहे वो ज़जीर हो या फिर शराबी. इस दौर में वे फिल्मों में चरित्र भूमिकाओं के लिए ऐसी ज़रूरत बन गए कि निर्माता-निर्देशक उनको मन मुताबिक पैसे देते थे. फिल्म डॉन के लिए निर्माता ने जितने पैसे अमिताभ को डबल रोल के लिए दिए थे उससे ज्यादा पैसे उन्हें प्राण को देने पड़े थे
अगर अभिनय सिनेमा के विकास में योगदान देती है तो उनका अभिनय हिंदी सिनेमा के लिए बड़ा योगदान था। जिन लोगों ने सिनेमा के विकास में बड़ा भारतीय सिनेमा के विकास के योगदान में प्राण अपना अमूल्य योगदान दिया। लेकिन हैरानी की बात है कि आज तक इस महान कलाकार को भारतीय सिनेमा में उल्लेखनीय योगदान के लिए दिए जाने वाले सबसे बड़े सम्मान दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से महरूम रखा गया
दादा साहेब फाल्के अवार्ड हिंदी सिनेमा में अविस्मरणीय योगदान के लिए दिया जाता है. लेकिन लगता है ये मापदंड सिर्फ कहने के लिए है. सरकार को जो पसंद आता है पुरस्कार उसे ही दिया जाता है. और अब तक प्राण को ये सम्मान न मिलना इस बात का प्रमाण है.
सवाल उठता है कि आखिर प्राण को यह पुरस्कार क्यों नहीं मिल रहा. क्या इसकी वजह खलनायकी को लेकर इस देश के लोगों का दुराग्रह है. लेकिन यह पुरस्कार तो चयन समिति और केंद्र की सरकार करती है. तो क्या वे लोग भी इसी दुराग्रह से ग्रसित हैं। अगर ऐसा है तो यह बड़ी हैरानी की बात है क्योंकि इस पुरस्कार का चुनाव जो समिति करती है उसमें सिनेमा जगत के दिग्गज लोग शामिल होते हैं. इन लोगों से उच्च कोटि की सिनेमाई समझ की अपेक्षा की जाती है. कम से कम इतनी तो ज़रूर कि कलाकार कलाकार होता है. चाहे वो नायक हो या खलनायक.
प्राण के अलावा कोई दूसरा कलाकार नहीं है जो इतने सालों तक सक्रिय है और जिसे अब तक ये सम्मान नहीं मिला है. इस दौरान उन्होंने साढ़े तीन सौ से ज्यादा फिल्मों में यादगार अभिनय किया. प्राण भारतीय सिनेमा के हर उतार-चढ़ाव के वे भागीदार रहे. इतनी सारी फिल्मों में अभिनय करना अपने-आप में एक उपब्धि है. वो सिनेमा के हर दौर में उन्होंने अपने अभिनय से मौजूदगी दर्शाई है. वे सिनेमा के हर-उतार चढ़ाव का हिस्सा रहे हैं.
हम आज कहते हैं कि महात्मा गांधी को नोबल पुरस्कार न मिलना महात्मा गांधी का नहीं नोबल पुरस्कार की बदकिस्मती है. कहीं हीं ऐसा न हो कि आने वाले दिनों में हमें यही बात प्राण और दादा साहेब फाल्के एवार्ड के लिए कहना पड़े.
ऐसा कौन सा अभिनेता है जिसने अभिनय को छबि से ज्यादा प्राथमिकता दी हो. अमिताभ आज कहते हैं कि वे अब बूढे़ हो गए हैं तो तरह तरह की भूमिकाएं निभा सकते हैं. उस दौर में नहीं क्योंकि एक हीरो के लिए चेहरा अहम होता था. जिस काम को करने का साहस हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के सर्वकालिन लोकप्रिय अभिनेता नहीं कर सके उसे करने का साहस प्राण साहब ने उनसे 50 साल पहले ही कर लिया.

Thursday, December 24, 2009

एंकर और रिपोर्टर...दोनों का काम है अपनी भावनाओं को काबू में रखकर आप तक खबरें पहुंचाना. लेकिन ये भी इंसान है. लिहाज़ा कभी-कभार इनकी भावनाएं भी स्क्रीन पर प्रकट हो जाती हैं और तब बनते हैं ऐसे मज़ेदार वीडियो

-कभी रिपोर्टर और एंकर की लड़ाई ऑनस्क्रीन भी हो जाती है...
(वी़डियो देखने के लिए ये URL पेस्ट करें)
http://www.youtube.com/watch?v=pOc4XgBespw&feature=related



क्या होता है जब आ जाता है एंकर को गुस्सा
(वी़डियो देखने के लिए ये URL पेस्ट करें)
http://www.youtube.com/watch?v=GpVuxgSxFFE

Wednesday, December 23, 2009

जब भिड़ गए एंकर और रिपोर्टर

गुरूवार की सुबह गृहमंत्री पी चिदंबरम का एक बयान आया. चिदंबरम ने कहा कि इस साल कोई हमला नहीं हुआ. इन हमलों के टलने के लिए उन्होंने अच्छी किस्मत को श्रेय दे दिया.चैनलों को ये अच्छा मसाला मिल गया. फौरन कांउटर बाइट ले ली गई. विपक्ष ने इस बयान की निंदा की. इस बड़े बयान को आज तक ने दिखाना शुरू किया. चैलन ने गृहमंत्री का बयान दिखाया. फिर विपक्ष का बयान दिखाया. इस बीच आज तक के एंकर गौरव सांवत ने इस खबर पर एक लाइन ले ली. उन्होंने इसे गृहमंत्री पी चिदंबरम की विनम्रता माना. उनका तर्क था कि गृहमंत्री ने पिछले एक साल में मंत्रालय में काफी बदलाव किए हैं.
इस मामले पर और बात करने के लिए आज तक गौरव के साथ चैट पर आज तक के रिपोर्टर शमशेर को खड़ा किया गया. सावंत ने ली हुई लाइन पर ये सवाल पुछा कि क्या ये बयान गृहमंत्री की विनम्रता न मानी जाए. रिपोर्टर ने इसका जवाब न में दिया. उनकी दलील थी कि जब कल ही देश के कई शहरों में एलर्ट जारी किया गया है इस बयान से गलत संदेश जाएगा.
जिस लाइन पर गौरव थे,रिपोर्टर उसके ठीक उलट था. एक अजीब सी स्थिति थी. जहां रिपोर्टर और एंकर एक खबर को अलग-अलग तरीके से देख रहे थे. अमूमन टैट के दौरान रिपोर्टर जो कहता है एंकर उसे अपडेट की तरह लेता है. लेकिन यहां हो गया उल्टा. गौरव ने फिर से बोलना शुरू किया. और गृहमंत्री के बयान का अर्थ समझाने लगे. शमशेर को वही दलीलें दी जिसके आधार पर वो ये ये लाइन लिए थे कि ये चिदंबरम की विनम्रता है. हांलाकि वो अपनी दलीलों से शमशेर की बातों को काट नहीं पाए.लेकिन अचानक एंकर की ओर से ऐसी प्रतिक्रिया मिलने से रिपोर्टर शमशेर हक्के बक्के रह गए. हालात एंकर और रिपोर्टर के भिड़ने वाली हो गई थी. दोनों अपनी बात पर अड़ गए. लेकिन शायद वक्त रहते पैनल ने भांप लिया कि मामला बिगड़ रहा है. लिहाज़ा चैट यहीं खत्म कर दिया गया.

Tuesday, December 22, 2009

ये टीवी मीडिया की मंदी कब खत्म होगी ?

दुनिया में मंदी के बादल करीब-करीब छंट चुके हैं. देश में भी अर्थव्यवस्था का थर्मामीटर बन चुका मुंबई स्टॉक एक्सचेंज का संवेदी सूचकांक 17 हज़ार के पार है. पर मीडिया की मंदी अब भी खत्म नहीं हुई है. आलम ये है कि जिन चैनलों ने मंदी के दौरान किसी को बाहर का रास्ता नहीं दिखाया वो अब छंटनी की तैयारी कर रहे हैं. पहला नाम टीवी 18 ग्रुप का है. दूसरा स्टार का. खबर है कि टीवी 18 ने अपने हिंदी और अंग्रेजी के बिज़नेस चैनल से करीब 250 लोगों की छटनी की. इस फैसले के बाद आईबीएन 7 और सीएनएन आईबीएन में भी छंटनी की सुगबुहाट तेज़ है. इस बीच खबर है कि स्टार में भी कोहराम मचा हुआ है. वहां भी प्रबंधन लगातार छंटनी के लिए दबाव बना रहा है. खबर यह भी है कि हफ्ते में दो दिन छुट्टी की परंपरा भी खत्म हो गई है. ये दोनों वो ग्रुप थे जो मंदी के खिलाफ मोर्चा लिए थे.इन दोनों चैनलों ने मंदी के दौर में भी छंटनी से परहेज़ किया. लेकिन अब लगता है इस मंदी ने पूरी मीडिया को अपनी चपेट में ले लिया.

Monday, August 31, 2009

क्या देश में चौबीस घंटे हिंदी न्यूज़ चैनल का कॉन्सेप्ट असफल हो गया - एक बहस


विदेशों की देखादेखी हिंदुस्तान में भी नब्बे के आखिरी दशक में 24 घंटे हिंदी खबरिया चैनलों की शुरूआत हुई. शुरूआत जैन ज़ी और स्टार(एनडीटीवी) के साथ हुई. और अपने शवाब पर चढ़ी आज तक के साथ. इसके बाद एनडीटीवी स्टार से अलग हुआ.स्टार का अपना और एनडीटीवी का अपना चैनल आया. इसी के साथ शुरू हुई चैनलों में टीआईपी की लड़ाई. इस जंग में चैनल की आईडी पहुंच गई क्राइम के मैदान से होते हुए श्मशान,शुरूआत ज़ी ने की. इसकी देखा देखी कई चैनल भूत के बाज़ार में उतर गए. इस बीच इंडिया टीवी और आईबीएन 7 भी मार्केट में आ गए. लड़ाई और मुश्किल हो गयी. टीआईपी में दशमलव की जंग शुरू हो गई.देखते ही देखते खबरों की दुनिया बदल गई.देश के हालात की बजाय सीरियल, रियेलिटी शो और कॉमेडी के शो दिखने लगे. शहर और गांव की तस्वीरों की जगह यू-ट्यूब के वीडियो नज़र आने लगे. इस ड्रामे से एक चैनल बचा हुआ था.एनडीटीवी.लेकिन अब उसमें भी खबरों की जगह टीवी शोज़ हावी रहते हैं. ज़ी और स्टार ज़रूर खबरों की दुनिया में लौट आए दिखते हैं.(न्यूज़ की पुरानी परिभाषा के मुताबिक) लेकिन टीआरपी के लिए उन्हें भी कुछ न कुछ खेला ज़रूर करना पड़ता है ) यानि चैनल वाले मान चुके हैं कि चैनल चलाए रखने के लिए नान न्यूज आइटम दिखाना पड़ेगा. शायद इसलिए अब किसी भी हिंदी चैनल पर चौबीस घंटे खबरें नहीं दिखतीं. अब सवाल उठता है कि क्या हिंदुस्तान में 24 घंटे न्यूज चैनल का कांस्टेप्ट असफल हो चुका है. आप क्या सोचते हैं.अपनी यहां टिप्पणी में दर्ज करें और इस बहस में भाग लें-

Saturday, August 22, 2009

सच की सनक के लिए कितनों की बलि



दिन बुधवार। तमाम खबरें। इन खबरों के बीच आई एक खबर। इस खबर ने सहसा ही सबका ध्यान खींच लिया। खबर थी मेरठ की। टीवी शो सच का सामना से जुड़ी। सच का सामना से प्रेरित होकर एक पति राजेश ने अपनी पत्नी आशा की गर्दन में ब्लेड मार दिया। इरादा था जान से मारने का। पर आशा की किस्मत तेज़ थी। वो बच गई। गंभीर हालत में उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया। बाद में पति गिरफ्तार हो गया। गिरफ्तारी के बाद उसने अपना गुनाह कबूल कर लिया। अपने किए पर उसे ज़रा भी पछतावा नहीं था।
इस खौफनाक घटना के पीछे था। सच जानने की सनक। जो राजेश में सच का सामना देखने के बाद सवार हुआ। राजेश के साले का आरोप था कि जब से राजेश ने सच का सामना देखना शुरू किया। उसने उलजूलूल हरकतें शुरू कर दीं। वारदात को राजेश ने पूरी प्लानिंग के साथ अंजाम दिया। उसे इस प्लान का आइडिया स्टार प्लस के शो सच का सामना से आया। वारदात के दिन राजेश बदला-बदला सा था। वो अपनी पत्नी को घुमाने के लिए पास की नहर के पास ले गया। वहां ले जाकर उसने बड़े प्यार से आशा के सामने सच का सामना की तर्ज पर एक गेम खेलने का प्रस्ताव रखा। जिसके मुताबिक राजेश राजीव खंडेलवाल की तरह सवाल पुछने थे और बीवी को उन सवालों का सही-सही जवाब देना था। बीवी ने साफ तौर से इसे खेलने से इंकार कर दिया। लेकिन राजेश के सिर पर सच की सनक सवार थी। उसे हर हाल में अपनी बीवी से सच जानना था। उसने मान मनोव्वल, इमोशनल ब्लैकमेलिंग, बच्चों का वास्ता देकर अपनी बीवी को सवालों के कटघरे में खड़े होने के लिए तैयार कर लिया। उसने आशा को यकीन दिला दिला कि सच कितना भी कड़वा हो, उनके रिश्तों पर इसका ज़रा भी असर नहीं पडेगा। पति की बातों पर यकीन करके आशा सवालों का जवाब देने को तैयार हो गई।
गेम शो की तरह राजेश ने शुरूआत हल्के फुल्के सवालों से की लेकिन उसके मन में कुछ और ही चल रहा था। सवाल कठिन होते गए। और आखिरकार वो सवाल आ ही गया । जिसके लिए राजेश ने ये पूरी भूमिका तैयार की थी। राजेश ने आशा से पुछा कि क्या उसके जिस्मानी ताल्लुकात उसके अलावा किसी और मर्द से रहे हैं। आशा इस सवाल को सुनकर अकचका गई। हालात की नज़ाकत को भांपते हुए राजेश ने अपनी पत्नी आशा को फिर यकीन दिलाया कि इस सवाल का जवाब हां होने पर भी उनके रिश्तों पर इसका असर नहीं पड़ेगा। आशा ने न चाहते हुए भी अपनी ज़िंदगी का सबसे बड़ा राज़ खोल दिया। उसने मान लिया कि उसके ताल्लुकात किसी और मर्द से रहे हैं। लेकिन राजेश को कुछ और भी जानना था। उसने पुछा कि उनके दोनों बच्चों का असली बाप कौन है। आशा ने राज़ तो खोल ही दिया था। उसने बता दिया कि एक का बाप वो नहीं है। ये जबाव सुनते ही राजेश आपे से बाहर हो गया। उसने फौरन एक ब्लेड निकाली और आशा के गर्दन पर वार करके उसने मरने के छोड़कर चला आया। लेकिन इस बीच वहां कुछ लोगों ने तड़पती आशा को देख लिया और उसे सही समय पर रिक्शे में लादकर अस्पताल पहुंचा दिया।
गिरफ्तार होने के बाद राजेश के मन में कोई पछतावा नहीं था। वो बस रोए जा रहा था। बार-बार एक ही बात कह रहा था। “मैं जीना नहीं चाहता”। दरअसल,वो अपने विश्वास के टुटने से ये बुरी तरह बिखर चुका था। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि जिस पत्नी पर उसने ऐतबार किया उसने इतना बड़ा धोखा किया। जिस बेटे को उसने अपना समझा वो किसी और का निकला।
एक हफ्ते के भीतर ये दूसरा मामला था जब गेम शो की वजह से दर्शकों के बीच किसी की ज़िदगी खतरे में पड़ी हो । इस वारदात से करीब एक हफ्ते पहले नोएडा के रहने वाले एक युवक पर कुछ ऐसी ही सनक सवार हुई थी सच जानने की । गेम शो देखने के बाद उसने रात को अपनी पत्नी के साथ सच का सामना खेलने की जिद की। उसने भी वही दलीलें दी जो राजेश ने दी थी लेकिन जब उसकी पत्नी ने अपनी ज़िदगी का सारा सच खोलकर रखा। तो सच का ये सदमा वो पति बर्दाश्त नहीं कर पाया और रात को फांसी लगाकर उसने खुदकुशी कर ली। सच का सामना एक हंसते खेलते परिवार को तबाह कर दिया।
ये दो घटनाएं उन दर्शकों के साथ हुई। जिन्होंने इस शो को देखा। जो इस शो में भाग लेते हैं उनके साथ क्या होता होगा। अंदाज़ा बड़ी आसानी से लगाया जा सकता है। बड़ी हैरानी की बात है कि इसे लेकर तमाम विरोध के बावजूद सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है। सच का सामना को बंद करने की मांग संसद में भी उठ चुकी है सरकार ने नोटिस भी जारी किया लेकिन इसके बाद क्या हुआ किसी को कुछ नहीं पता। शो की टाइमिंग चेंज कर दी गई ताकि बच्चे उसे न देखें लेकिन टुटते रिश्तों के इस दौर में इस रिश्तातोड़ु शो के असर से परिवार को कैसे बचाया जाए। इसका मुक्कमल इंतज़ाम अभी तक नहीं हुआ। आखिर कब जागेगी सरकार और ये समझेगी कि तमान सनसनीखेज़ मसालेदार मनोरंजन से ज्यादा कीमती किसी की जान होती है। ये हिंदुस्तान है। 5 हजार साल पुराना हिंदुस्तान। इतनी पुरानी सभ्यता दुनिया में कहीं और नहीं। वो भी इसलिए क्योंकि हमने अपनी सभ्यताओं और परंपराओं को अपने घर की चाहरदीवारी में अपने परिवारों में संजोए ऱखा। अब खतरा उसी पर मंडरा रहा है।
हैरानी की बात है कि धर्म और संस्कृति के तथाकथित ठेकेदार इस शो के खिलाफ खामोश हैं। वेलेंटाइन डे को अपनी संस्कृति पर हमला बताने वाले तब इसके विरोध में एक शब्द तक नहीं बोल रहे, तब जबकि वाकई हमारी संस्कृति पर खतरा है । जाहिर है उनके लिए धर्म और संस्कृति हथियार हैं इसका इस्तेमाल वो तभी करते हैं जब इसका उन्हें राजनीतिक फायदा दिखता है।

Friday, August 7, 2009

सच का सामना या सेक्स से सामना




देश में इस वक्त बवाल मचा है। स्टार प्लस के नए रियलिटी शो 'सच का सामना' को लेकर। आम जनमानस इस शो को बंद कराने के पक्ष में दिख रहा है। सबसे बड़ी वजह है निजी बातों को सार्वजनिक करने के इस शो के चरित्र और रिश्तों और लोगों के विश्वास पर इसके पड़ने वाले असर के चलते। जबकि नैतिकता, मर्यादा को इंसानी विकास का दुश्मन समझने वाले और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को ढाल बनाकर हर गलत बात को जायज़ ठहराने वाले तथाकथित बुद्धिजीवियों के एक तबके ने इस शो के पक्ष में हवा बनानी शुरू कर दी है। कोई इसकी टीआरपी को इसकी स्वीकार्यता बता रहा है। कोई कह रहा है कि जब प्रतियोगियों को अपने बेडरूम और सेक्स से संबंधित बातें बताने में कोई गुरेज़ नहीं है तो शो को लेकर हाय तौबा क्यों? साथ में ये तोहमत भी नत्थी किया जा रहा है कि सच को हम स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं, हम पाखंड में जीने वाले लोग हैं, इससे हमारे समाज का खोखलापन दिखता है, इसलिए वे लोग इसे बंद कराने पर आमादा है। कहने की ज़रूरत नहीं कि देश में पैदा हुए इन विदेशियों को हर चीज़ विदेशी चश्मे से देखने की आदत पड़ चुकी है। हीन भावना से ग्रस्त इन बुद्धजीवियों को यहां की हर बात में खोट और खामी नज़र आती है, इसीलिए ये लोग हर उस बात का समर्थन करते हैं, जिससे इन्हें यहां के समाज और संस्कृति को गाली देने का मौका मिले। देश में पैदा हुए इन विदेशियों को न तो भारत की समझ है न यहां के लोगों । भारतीय जीवन शैली और उसके सामाजिक ताने-बाने में इनकी जानकारी उतनी ही है जितनी किसी विदेशी को होती है। अभिव्यक्ति की आज़ादी, बराबरी।(आज़ादी और बराबरी की बात करने वाले सभी ऐसे नहीं हैं)॥ये इनके वो सदाबहार दलील हैं, जिसको ये अपनी हर बात पर चिपका देते हैं को इन लोगों ने अपना हथियार बना लिया है...जब भी भारतीय समाज को नीचा दिखाने हो, उसके मूल्यों को ज़लील करना हो, ये इन्हीं दलीलों का हवाला देते हैं...टीवी वाले इन लोगों को भौंकने का मौका दे देते हैं॥इसलिए फोकट में सुर्खियों में बने रहते हैं....। का मामला संसद से लेकर कोर्ट तक उठ गया है.....संसद में तमाम सासंदों ने इस शो पर कड़ी आपत्ति की है......और इस पर तुंरत रोक लगाने की मांग की है....इस बीच सरकार ने नोटिस जारी कर दिया और स्टार इंडिया की ओर से नोटिस का जवाब भी सरकार को मिल गया....मीडिया में आ रही ख़बर के मुताबिक सरकार स्टार को घुड़की देकर और कुछ सलाह देकर शो को चलते रहने देगी....। दूसरी तरफ मामला कोर्ट में भी चल रहा है अब देखना है कि कोर्ट का इस विवाद पर क्या रूख रहता है....एक बात तो मानने में कोई गुरेज़ नहीं है कि विदेशी आईडिया के नकल पर बने इस शो ने विवादों से इतनी सुर्खियां बटोर ली है॥जो शायद देश के टेलीविज़न इतिहास में किसी ने न बटोरी हों..और निश्चत तौर पर इसका फायदा कार्यक्रम को मिलेगा....और स्टार इसकी टीआरपी दिखाकर कहेगा कि ये कार्यक्रम लोगों को पसंद आ रहा है ये शो अमेरिका में प्रसारित होने वाले शो द मुमेंट ऑफ ट्रुथ पर आधारित है...मुंमेट ऑफ ट्रुथ खुद कांलबियन शो Nada más que la verdad यानी नथिंग बट द ट्रुथ पर आधारित है.....शो में इक्कीस सवाल पुछे जाते हैं...जिनमें से ज्यादातर सवाल नितांत निजी औऱ सैक्स से जुड़े होते हैं..इस समय ये शो दुनिया के 46 अलग-अलग देशों में दिखाया जा रहा है...नाम अलग-अलग, लेकिन सवाल वही, कार्यक्रम का फॉर्मेट और नतीजा एक । 21 सवाल...सवाल के नाम पर निजता पर हमला...और इसका रिश्ता तोड़ू असर...। जहां भी ये शो प्रसारित हो रहा है...इसने समाज को तोड़ने का ही काम किया है...लेकिन हर जगह इसने सफलता से ज्यादा विवादों से सुर्खियां हासिल की.....कैसे इसने परिवारों को तोड़ा....इसके तमाम किस्सों से इन्टरनेट भरा पड़ा है....शो के दौरान ही कई रिश्ते टुट गए...ये आप यु-ट्यूब। में देख सकते हैं......ग्रीस में वहां टेलीविज़न और रेडियो काऊंसिल ने बंद करा दिया है..इससे पहले इस शो को लेकर से वहां के सबसे बड़े ब्रॉडकास्टर एंटिना पर दो बार फाइन लगाया गया....लेकिन इसके बाद भी लोगों की सैक्स लाइफ को सार्वजिनक करने की इसकी प्रवृति बंद नहीं हुई तो इसे बंद कर दिया......देश में उस समय हड़कंप मच गया जब शो में एक महिला से पुछा गया कि क्या आपने कभी पैसों के लिए सैक्स किया है.....।कोई हैरानी नहीं ये शो चलता रहा तो आने वाले एपिसोड में आपको ऐसे ही सवाल सुनने को मिलेंगे......और हमारे यहा तो नकेल कसने के लिए कोई रेगुलेट्री भी नहीं है....और जब पश्चिम का खुला और रिश्तों से आज़ाद रहने वाला समाज इसे पचा नहीं पा रहा है...तो हमारा पंरपरावादी समाज इसे क्यों देखे । इस शो पर प्रतिबंध लगाने की मांग के पीछे बड़ी वजह यह है कि शो खुद ही एक बड़ा छलावा और फरेब है.. शो का पूरा ताना बाना ही झूठ और फरेब के इर्द गिर्द बुना गया है....शो में पुछे गए सवाल बताते हैं कि यहां सच का मतलब सिर्फ और सिर्फ सैक्स है....सच की अग्निपरीक्षा पार कराने के नाम पर व्यक्ति के सैक्स लाइफ से जुड़े सवालों को उठाया जाता है.....इसलिए नहीं कि लोगों को उनके जीवन का सच बता सकें...बल्कि इसलिए कि सैक्स को सच की आड़ में बेच सकें.....कोई पूछे तो शो के कर्ताधर्ताओं से कि आदमी के सच और झूठ का निर्धारण केवल सैक्स लाइफ से ही हो सकता है.... क्या जीवन के अंतरंग पलों को बेनकाब करने से ही तय होता है सच्चा कौन है...ये नहीं है ये है सैक्स का सामना...अगर आपमें दम है तो अपनी सैक्स लाइफ अपने मां बाप और सारी दुनिया के सामने शेयर करो.....तभी बनेंगे सच्चे इंसान....इनसे ज़रा पुछिए कि जिस हरीशचंद्र को हम सच के लिए याद करते हैं...उन्होंने अपने सैक्स लाइफ के बारे में क्या बाते की थीं....मुझे मालूम है शो को बनाने वाली टीम के ज्यादातर लोगों को पता भी नहीं होगा कि हरीशचंद्र कौन थे.... । सच के नाम पर लोगों की प्राइवेट लाइफ में झांकने की इजाज़त किसने दी आपको......। ठीक है कन्टेस्टेंट अपनी मर्ज़ी से आते हैं....लेकिन उन्हें सच के नाम पर बरगलाता कौन है....हो सकता है कि कन्टेस्टेंट की रज़ामंदी के बाद ही उसकी प्राइवेट ज़िंदगी से संबधित सवाल पुछते हो...कंटेस्टेंट और आयोजक दोनों रज़ामंद हो भी तो भी इस प्राइवेट लाइफ को हमसे साझा करने की इजाज़त किसने दी....? किसी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का ये मतलब तो कदापि नहीं है कि आप इसका जो मर्जी में आए,फायदा उठा लें.....स्टार टीवी को अगर लगता है कि जो लोग इन सवालों का जवाब देते हैं वो सच के असली सिपाही हैं..तो ले जाए उनको। बंद कर दे एक कमरे में.। और दे दे उसे एक करोड़ रूपये, जो इक्कीस सवालों का सच सच जवाब दे दे.। लेकिन ये सवाल सार्वजिनक करने का मतलब तो यही है न कि आप सच के नाम पर सनसनी पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं..आप कह सकते हैं कि आपके हाथ में रिमोट है...आप चैनल बदल लीजिए....लेकिन तब क्या कोई क्या करे...जब दूसरे तमाम चैनलों पर भी इसका प्रोमो हर ब्रेक में प्रकट हो जाता है....क्या ये सच है कि आप अपने पति को मारना चाहती थी?..अगर ये कार्यक्रम देखकर किसी का रिश्तों से विश्वास उठ जाए और वो कोई अपराध करने को विवश हो जाए तो इसकी ज़िम्मेदारी किसकी है..... विश्वास टुटने की पीड़ा और ज़िदगी पर पड़ने वाले असर का हर्ज़ाना कौन भरेगा...जिसने भी इसका प्रोमो देखा होगा वो समझ गया होगा कि सच के नाम पर सेक्स कैसे बेचा जाता है..कितनी चालाकी से शो के कर्ताधर्ताओं ने सैक्स के साथ सच का घालमेल किया है....। राजीव खंडेलवाल स्क्रीन पर आते हैं. सच की दुहाई देते हैं. सच को अग्निपथ बताते हैं. .फिर अवतरित होती हैं एक टीवी एक्ट्रेस. , उनसे पुछा जाता है एक सवाल- “क्या ये सच है कि आपको कॉलेज से इसलिए निकाला गया क्योंकि आप प्रेग्रनेंट हो गई थीं”…..। फिर दर्शकों से पुछा जाता है- “क्या आप कर सकते हैं..., अगर हां, तो आप जीत सकते हैं एक करोड़”। सोचिए जरा। क्या किया जा रहा है। सच का प्रचार या सेक्स को सनसनीखेज़ तरीके से बेचा जा रहा है। आपसे ये कहा जा रहा है कि अगर आप ऐसे ही सवालों का जवाब दीजिए इसकी कीमत आपको मिल जाएगी...कीमत होगी एक करोड़। अब जो इनके झांसे में फंस जाते हैं, उन्हें एक करोड़ तो नहीं मिलते, ज़माने की ज़लालत ज़रूर भोगकर जाते हैं। जितना अपमानित वो पूरी ज़िदगी में नहीं होते, एक घंटे के अंदर हो जाते हैं। मां-बाप बीवी, भाई-बहन को इनके सेक्सी सच से जो पीड़ा होती है। सो अलग।.इस शो में प्रतियोगियों का सामना सच से होता हो या न होता हो....घर टुटने और रिश्ते बिखरने का पूरा इंतज़ाम रहता है......बार-बार सच,सच बोलकर प्रतियोगियों की इज्ज़त उतारी जाती है...और फिर बेईमानी करके प्रतियोगी को बाहर कर दिया जाता है....जब ये तय हो जाता है कि आपने जवाब देकर अपने परिवार को तोड़ने का पूरा इंतज़ाम कर लिया है तो आपको उन सवालों से घेरा जाता है, जिनका उत्तर कोई भी हमेशा एक नहीं दे सकता ....यानी इस पर आपकी राय समय-समय पर बदलती रहती है......मसलन, क्या आप अपनी बीवी के गुलाम है...ये बात आप कभी मानते होंगे कभी सोचते होंगे कि नहीं मैं जोरू का गुलाम नहीं.....कहने का मतलब ये कि भले ही शो खुद को सच की अग्निपरीक्षा बताए.. पर खुद इसका सच से कोई सरोकार नहीं है.. इस शो के ज़रिए स्टार प्लस अपनी एक भी ज़िम्मेदारी को नहीं निभा रहा है। न तो वो सूचना देने का काम कर रहा है न लोगों को शिक्षित बना रहा है...न समाज को इससे कोई फायदा हो रहा है न संस्कृति को...तो क्यों चले ये शो,,,,,,,,,अब स्टार प्लस वाले बताएं कि इस शो का मकसद क्या है.....शो को मसालेदार और सनसनीखेज़ बनाने के लिए ही प्रतियोगियों को अपमानित किया जाता है...न शो में उनकी ज़िदगी को लेकर कोई सम्मान है न ही समाज पर इसके पड़ने वाले असर का......ये शो न तो टेलीविज़न होने की किसी तरह की सामाजिक ज़िम्मेदारी का निर्वहन करता है..न ही देश के सांस्कृतिक तरक्की में अपना योगदान देता है...इसके लिए इंसानी ज़िदगी को लेकर कोई सम्मान नहीं है। भारतीय जनमानस इस शो को पचा नहीं पा रहा है.....यही वजह है कि मामला तुरंत संसद तक जा पहुंचा। सरकार की कोई कार्रवाई हो इससे पहले ही शो ने अपना टाइम खिसका कर साढ़े दस कर लिया। ताकि कहने को हो गया कि नया टाइम एडल्ट कंटेट को ध्यान में रखकर किया गया है। इस वक्तर बच्चे सो जाते हैं। लेकिन खतरा खतरा सिर्फ बच्चों को नहीं है...बड़ों को भी है.। क्या हम जिस पति और पत्नी के पावन रिश्ते को विश्वास के सहारे पूरी जिदगी निभा जाते हैं। उस रिश्ते पर इस शो की काली छाया नहीं पड़ेगी ? जब एक पति शो में साथ जीवन गुज़ार देने वाली पत्नी के मुंह से सुनता होगा कि वो अपने पति को जान से मारना चाहती थी, तो क्या उसका विश्वास इस रिश्ते से कम नहीं होगा। आप में से कई लोगों की ज़िदगी में भी तमाम ऐसे मौके आए होंगे, जब गुस्से में आपके मन में किसी के कत्ल का ख्याल आया होगा। और हो सकता है कई बार आया हो। लेकिन उतना ही सच ये भी है कि आप क़ातिल नहीं हैं। क्योंकि ये ख्याल अल्पकालिन था । मन से ख्याल आने का मतलब ये नहीं कि आपने हत्या की कोशिश की..लेकिन जिस महिला से ये बोलवाया गया, सोचिए अब उसकी ज़िदगी कैसे बीत रही होगी स्टार प्लस पर प्रसारित होने वाले इस शो से सबसे ज्यादा ख़तरा भारतीय परिवार को है । .उस परिवार को जो हमारे समाज,हमारे देश की सबसे ताकतवर इकाई रहा है। आज से नहीं हज़ारों सालों से। इसी परिवार में हमने अपनी संस्कृति,अपनी पहचान अपनी परंपराओं को हजारो सालों तक सहेज कर रखा...। हजारों साल तक हम पर हमले होते रहे। लेकिन ये हमारे पारिवारिक ढ़ाचें को खत्म नहीं कर सके। इसी परिवार की ताकत के बूतें हमने बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपने मुताबिक ढालने पर मजबूर कर देते हैं....लेकिन अब मामला दूसरा है। हमें ये भी गौर करना होगा कि टीवी आज दुनिया का सबसे ताकतवर माध्यम ही नहीं है ये एक घातक हथियार में बदल चुका है...जो सीधे हमारी सोच पर हमला करता है। आज-कल के बच्चे मां-बाप और शिक्षकों से ज्यादा टीवी को देखकर सीख रहे हैं। घर का काम निपटाने के बाद घरेलू महिलाएं दूसरा सबसे महत्वपूर्ण काम करती हैं, .टीवी सीरियल देखने का.। कामकाजी पुरूष-और महिलाएं दफ्तर से थक-हार कर घर लौटते हैं तो सबसे पहले रिमोट खोजते हैं। अब टीवी सिर्फ मनोरंजन या जानकारी के साधन नहीं रह गए बल्कि ये हमारे आंख और कान हो गए हैं। हम जो टीवी पर देखते हैं उसका गहरा असर पड़ता है..टीवी अब समाज का आईना नहीं रह गया है बल्कि वो सही-गलत रास्ता दिखाने वाला सशक्त माध्यम बन गया है। और शायद इसीलिए पिछले एक दशक में टीवी ने हमारी ज़िदगी को जितना बदला है उतना शायद किसी और ने नहीं। इसलिए हमें “” जैसे शो से ज्यादा सावधान रहने की ज़रूरत है..टीवी प्रकरांतर से बाज़ार का साथी हैं.... बाज़ार तभी और फलेगा-फूलेगा जब परिवार कमज़ोर होकर टुटेगा...कंडोम और गर्भनिरोधक गोलियां तभी बिकेंगी जब लोग फ्री सेक्स में विश्वास करेंगे..। तो जो लोग ये कहते हैं कि हम वही दिखाते हैं जो दर्शक देखना चाहते हैं,क्योंकि मीडिया समाज का आईना होता है....वो दरअसल मीडिया की ताकत को नहीं समझते या फिर वो एक बड़ी साज़िश के साझेदार है...इसलिए ऐसे लोगों से अब ज्यादा सावधान रहने की ज़रूरत है.....क्या ये महज़ इत्तेफाक है कि शो के चार शुरूआती प्रायोजकों में से एक कंडोम की कंपनी है...और दूसरी प्रेगनेंसी रोकने का दावा करने वाली दवा...। इस शो से ये साफ हो गया कि टीवी वाले अब खतरनाक बन चुके हैं..... वे अब किसी भी हद तक गिरने को तैयार हैं...अगर इन्हें छुट मिल जाए तो ये लाइव सैक्स और लाइव रेप का कार्यक्रम भी शुरू कर सकते हैं.. क्योंकि इन्हें न तो लोगों की चिंता है न ही देश और समाज की....इसलिए इन पर लगाम बेदह ज़रूरी है....ये दुर्भाग्य है कि फिल्मों पर लगाम कसने के लिए हमारे देश में सेंसर बोर्ड तो है पर टेलीविज़न के लिए नहीं.....टेलीविज़न के लिए बस मॉनिटरिंग से काम चलता है....और जब सरकार खुद कह चुकी है कि हर चैनल पर नज़र रखना आसान नहीं है.तो फिर मानिटरिंग किस दर्जे की होती होगी..अंदाज़ लगाना मुश्किल नहीं.... ...दरअसल ये शो भारतीय टेलीविज़न इतिहास का सबसे बड़ा कंलक है....जिसे जल्द से जल्द मिटाना बेहद ज़रूरी है.......।।।।

Thursday, July 30, 2009

घरों में घुसकर गालियां देता टीवी



सुबह
सुबह मैंने अख़बार में एक ख़बर पढी .अक्षय कुमार और करीना कपूर स्टारर कंबख़्त इश्क़ को सेंसर बोर्ड ने ए सर्टिफिकेट दिया है क्योंकि अक्षय कुमार ने करीना को फिल्म में कुतिया और करीना ने अक्षय को कुत्ता कहा है.
रात को घर पहुंचा तो देखा मैंने टीवी पर एक शो देखा. एम टीवी का रोडीज. शो में जो कुछ दिखाया जा रहा था.वो काफी हैरान करने वाला लगा. जब मैंने ये कार्यक्रम देखा तब उस दिन का एपिसोड ख़त्म होने के कगार पर था. चंद पलों बाद किसी एक प्रतियोगी को बाहर होना था. प्रतियोगियों के वोट से एक लड़की बाहर हुई. लेकिन तभी इस लड़की की एक दूसरी लड़की से ज़ुबानी जंग छिड़ गई. इस जंग में दोनो लड़कियां एक दूसरे की इज़्जत तार तार करने पर आमादा थीं. दोनों की भाषा और लांछन लगाने का स्तर देखकर मेरी आंखें फटी की फटी रह जाती हैं. पहली दूसरी को वैश्या बता रही थी. तो जवाब में दूसरी, पहली से कपड़े उतार कर चेक करने को बोलती है कि वो लड़की है या नहीं. बात यहीं खत्म नहीं होती. दोनों एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए चरित्रहनन की हदें पार करती चली गईं. पहली कहती है कि दूसरी कितने बार अपने ब्वाय फ्रैंड के साथ सो चुकी है. दूसरी कहां पीछे रहने वाली थी, वो पहली को याद दिलाती है कि वो कितने लोगों के साथ सो चुकी है. आप ये मत सोचिएगा कि दोनों अंग्रेज़ी शब्द स्लिप का हिंदी सोना बोल रही थीं. दोनों ने ऐसे-ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया. जिसे कम से कम मैं तो नहीं लिख सकता.
दो अलग अलग मापदंड. एक तरफ कुत्ता और कुतिया व्यस्कों की मानी गई, जिसे बच्चे नहीं देख सकते. दूसरी तरफ-जो बात भारत के व्यस्क भी घर परिवार में नहीं बोल सकते ऐसी गालियां टीवी के ज़रिए हमारे घरों के बच्चों तक पहुंचाई जा रही है.
बहरहाल, टीवी देखने के बाद मैंने रोडीज़ के बारे में अपने दोस्त से बात की. उसने बताया कि इस रियलिटी शो में गालियों की भरमार रहती है. बिना गाली के कोई रोडीज़ नहीं बन सकता है. कहने को गालियां बोलते वक्त बीप लगा दिया जाता है, लेकिन ये बीप इस तरह लगाया जाता है कि बच्चे भी समझ जाएं कि कौन सी गाली बकी जा रही है
एडिटिंग से बीप का इस्तेमाल करके प्रतियोगियों को खुल्लमखुल्ला गाली बकने की छूट मिल जाती है. जैसे मां की गाली में ’मा’ सुनाई देता है फिर पीं बजता है फिर आखिरी का ‘द’ सुनाई देता है.... और जब लगातार गालियों की बौछार होती है, तो कई बार सब सुनाई देता है....।
मेरा दोस्त टीवी का दीवाना है...। उसने इस शो और ऐसे ही दूसरे शो के नंगेपन के बारे में तमाम बातें बताईं.....।उसने बताया कि जब शो के लिए प्रतियोगी सलेक्ट हो रहे थे...तो उनके चयन का एक आधार गाली थी...जो लड़की जितनी गंदी गाली देगी उसे उतने प्वाइंट्स मिलेंगे....। प्रतियोगियों के साथ चयन में तमाम बदतमीज़ियां हुईं। उन्हें जलील किया गया..।मारा पीटा गया...। यही नहीं शो में प्रतिभागी कुवांरे लड़के और लड़कियां ऐसी बोल्ड बातें करते हैं जो बात आधे हिंदुस्तानी पतियों ने अपनी पत्नियों से नहीं की होगी
जब मैंने हैरानी जताई कि फिर कैसे ये शो चल रहा है...इसे अब तक रोका क्यों नहीं गया....तो उसके जवाब ने एक बार फिर मुझे नाखून चबाने पर मजबूर कर दिया....। बोला कि एक चैनल बिंदास तो अपनी बिंदास छबि झाड़ने के लिए गालियों की झड़ी लगा देता है....चाहे कैसा भी कार्यक्रम हो.... हिंदी में डब अंग्रेज़ी फिल्मों हो या फिर महिलाओं की कुश्ती.....। मजाल है कि बिना पीं पीं (यानी गालियों ) के चल जाए....। उसने बताया कि कुछ समय पहले तक वो एक सीरियल देखा करता था....चल यार चिल मार....। वो बताता है कि इसका एक पात्र बात बात पर बहन की गाली देता है....।
कुछ समय पहले जब मैं रियेलिटी शो बिग बॉस सीज़न वन देखा करता था तो इसमें हिदायत दी गई थी कि गाली न दी जाए...लेकिन कुछ प्रतियोगी गाली देते थे...। फिर भी इसका इसका स्तर इतना घटिया और इसकी बारंबारता इतनी नहीं थी जितनी रोडीज की है....।
दरअसल ये शो और ऐसे चैनल दिमागी दिवालिपने के शिकार लोगों की पैदाइश हैं...वे दर्शकों को कुछ नया नहीं दे सकते...... इसलिए गाली गलौज और बेडरूम की प्राइवेट बातें वे प्रतियोगियों के ज़रिए दर्शकों तक पहुंचा रहे हैं.....। ताकि उनके शो को एक पहचान मिल सके और इससे पैदा होने वाली सनसनी दर्शक बटोर सके....। इन लोगों के पास इसके अलावा कोई चारा नहीं है....क्योंकि ये सभी आईडिया के स्तर पर कंगाल हैं...रोडीज का मुकाबला बिग बॉस और खतरों के खिलाड़ी जैसे रियलिटी शो से है...तो बिंदास का मुकाबला दूसरे चैनलों से है....। जिससे गुणवत्ता के आधार पर ये मुकाबला नहीं कर सकता....।
इसे बनाने वालों की दलील हो सकती है कि अगर आपको ये नहीं देखना तो आपके हाथ में रिमोट है इसे मत देखिए...तो बड़ा सवाल ये खड़ा होता है कि क्या मैं नहीं देखूंगा तो देश के कच्ची उम्र के बच्चे इसे नहीं देखेंगे....जब कुत्ते और कुतिया के संवाद वाली फिल्म देखने के लिए उन्हें अयोग्य माना जाता है तो फिर ये नान वेज गालियों वाला प्रोग्राम क्यों उन तक पहुंचाया जा रहा है.......क्या किसी मां बाप के लिए ये संभव है कि वो हमेशा अपने बच्चों को ऐसे कार्यक्रमों से दूर कर रखे......।और दूर रखने का रास्ता क्या होगा....क्या चौबीसो घंटों बच्चों पर नज़र रखी जाए या फिर उन पर नज़र रखने के लिए नौकर रखा जाए.....।
अगर ये दलील दी जाए गालियों को समाज का सच होती है और गालियां कहां नहीं दी जाती...लेकिन सवाल ये खड़ा होता है..कि क्या कहीं भी गालियों को अच्छी नज़र से देखा जाता है...। कितने पढ़े लिखे लोग ऐसे हैं जो अपनी मां बहन के सामने गाली गलौज करते हैं...और फिर ये नहीं भूलना चाहिए कि मीडिया समाज का सिर्फ आईना नहीं दिखता है..मीडिया को रास्ता भी दिखाता है...बच्चे ही नहीं बड़े भी मीडिया में दिखाई जाने वाली बातों का अनुसरण करते हैं...। मीडिया से काफी कुछ सीखते हैं...फिर क्या हमें गाली परोसने का हक है...गालियों की तरफदारी वही कर सकते हैं, ,जो नहीं चाहते कि समाज सुधरे, समाज में जो बुराईयां विद्यमान हैं वो ख़त्म हों....।
इन शोज़ और सीरियल का ही नतीजा है कि पढ़ने लिखने वाले लड़के अपने घरों में गाली दे रहे हैं...मां बाप परेशान हैं कि आखिर कैसे ये लत छुड़वाई जाए.......।
ऐसे कार्यक्रमों के लिए जितने दोषी इसे बनाने वाले निर्माता ज़िम्मेदार हैं...उतने ही ज़िम्मेदार है हमारी सो रही सरकार...आखिर इन सबको रोकने की ज़िम्मेदारी किसकी है......इसके लिए हमारा बुद्धिजीवी तबका भी कम दोषी नहीं है....छोटी छोटी बात के लिए ख़बरिया चैनलों को कोसने वालों की नज़र इस तरफ क्यों नहीं गई...अगर गई तो इसके खिलाफ कोई आवाज़ क्यों नहीं उठाई....क्या उन्होंने ये सोचने की कोशिश नहीं की कि हमारे समाज पर इसका कितना दुष्प्रभाव पड़ रहा होगा....क्या उनकी ज़िम्मेदारियां केवल खबरिया चैनलों को कोसने तक ही सीमित है......
आज़ादी और अभिव्यक्ति के नाम पर किसी को हमारे घर में घुस कर गाली गलौज सिखाने की इजाज़त नहीं है..इसलिए हम चाहते हैं कि इन बेहूदा कार्यक्रमों पर जल्द से जल्द रोक लगे.....हम इसे बर्दाश्त नहीं कर सकते....और हां...इसे हमारी पीड़ा समझने की गुस्ताख़ी कतई न समझें ये हमारा गुस्सा है...जो कहां से कब फूट जाए पता नहीं
।। एक आम आदमी ।।

ममता की मेल में कब मिलेगी हमारी परेशानियों को जगह




ममता ने अपनी रेल में हर तबके को जगह देने की कोशिश की है...युवाओं से लेकर महिलाओं, छात्रों, बुर्जुर्गों का ख्याल रखा है...लेकिन आसमानी घोषणाओं के बीच आम जनता की परेशानी कहीं पीछे छूट गई है...रेल में आम जनता को यात्रा करते वक्त आम तौर कुछ परेशानियों से हमेशा रूबरू होना पड़ता है....ये परेशानी हर ट्रेन में हर यात्रा में होती है....उन्हीं परेशानियों का ज़िक्र है....ये परेशानी आम यात्री की है...जो स्लीपर क्लास में सफर करता है
किसी की यात्रा पहली परेशानी होती है टिकट कन्फर्म कराने की......खास तौर पर त्यौहारों और गर्मियों में.......। ममता ने तत्काल बुकिंग की सीमा को पांच दिन से घटाकर दो दिन कर दी है......लेकिन इससे कन्फर्मेशन की समस्या का माकूल हल होता नहीं दिखता......जब से ई टिकटिंग की व्यवस्था शुरू हुई है....तब से इंटरनेट के ज़रिए बुकिंग कराने वाली रेलवे आरक्षण की दुकानें गली-मोहल्लों में खुल गई हैं...ये रेलवे आरक्षण वाले मुसाफिरों से मनमाने पैसे लेकर उनके टिकट कनफर्म कराती हैं....टिकट कन्फर्म कराने के लिए इन लोगों ने अपनी सांठगांठ रेलवे के भीतर कर रखी है....ये अलग अलग कोटों के ज़रिए यात्रियों के टिकट कन्फर्म कराते हैं...रायपुर में ऐसी दर्जनों दुकानें हैं....जहां यात्रा से एक दिन पहले ली गई टिकट गारंटी के साथ कनफर्म की जाती है...जबकि दस या बारह वेटिंग नंबर वालों का टिकट कन्फर्म नहीं होता......ये समस्या दिखने में छोटी हो सकती है.....लेकिन इससे रोज़ाना सैकड़ों लोग मुसीबतें झेलते और लुटते हैं.....जो टिकट विशेष लोगों और विशेष परिस्थितियों के लिए होती है...उसका इस्तेमाल रेलवे में बैठे लोग दो नंबर से पैसे बनाने के लिए ये काम कर रहे हैं.....। कन्फर्म टिकट न मिलने की दूसरी वजह है....एंजेट और दलालों का फैला जाल...आप नई दिल्ली स्टेशन चले जाईये....आरक्षण केंद्र के अंदर और बाहर आपको कई दलाल मिल जाएंगे जो स्लीपर को दो से तीन और एसी के पांच सौ से सात सौ सौ रूपये ज्यादा देकर कन्फर्म टिकट देते हैं..... हां हो सकता है कि ये यात्रा आपको किसी दूसरे के नाम से करनी पड़े....ये दलाल इस बात से अच्छी तरह वाकिफ होते हैं.....कि कौन सी ट्रेन में टिकट का टोटा होता है....इन टिकटों की बुकिंग ये अलग अलग नामों से पहले ही करा लेते हैं...इसके लिए इनके कारिंदे रोज़ाना रिज़र्वेशन की लाइन में लगे होते हैं...अलग अलग ट्रेनों में अलग अलग नामों से ये टिकट लेते हैं....और फिर मुसाफिरों को ये टिकट बेच देते हैं.....। महिला का टिकट महिला यात्री के लिए पुरूषों के नाम से खरीदे गए टिकट पुरूष यात्रियों के लिए..। कुछ तो अपनी पैठ इतनी अच्छी बना लेते हैं कि वो कांऊटर के अंदर बैठकर फर्जी नामों से टिकट बनवाते हैं....। यात्रियों को अगली दिक्कत झेलनी पड़ती है ट्रेन में यात्राकरते वक्त...., दिक्कत होती है टीटीई की मनमानी से....अगर आपका टिकट कन्फर्म नहीं है...और अगर आपका वेटिंग एक से दस के बीच में हो तो आप आश्वस्त मत होईएगा कि आपको सीट ट्रेन में मिल जाएगी....। टीटीई टिकट उसी को देगा जो उसे हरे हरे नोट देगा....दरअसल ये टीटीई भ्रष्टाचार को अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं....और कोई इनके अधिकार पर हमला बोले, ये किसी भी सूरत में इसे बर्दाश्त नहीं कर सकते....। .मैं आपको हाल की घटना बताता हूं.....मैं 16 जून को छ्त्तीसगढ़ संपर्कक्रांति एक्सप्रेस में दिल्ली से बिलासपुर जा रहा था...टिकट तत्काल की थी....वेटिंग 6.और 7.। मुझे लगा सीट होगी तो मिल ही जाएगी...थोड़ी दूर के बाद देखा कई यात्री जिनका वेटिंग पचास साठ है...वो टीटीई के पास से सीट लेकर खुशी खुशी लौट रहे हैं....। मैं भी टीटीई के पास पहुंचा...मैंने कहा साहब मेरी वेटिंग 6 और 7 है, मेरी सीट कन्फर्म नहीं हुई है और आपने उन लोगों को भी सीट दे दी, जिनके पास जनरल की टिकट है...। टीटीई साहब ने मुझे ऊपर से नीचे देखा.....। फिर बोले ‘आप कहां बैठे हैं’ मैंने कहा फलां बोगी बोले वहीं बैठिए मैं आ रहा हूं...मैं चुपचाप उनकी बातों पर यकीन करके चला गया..। लेकिन मेरे बाद कई लोग गए और अपना टिकट कन्फर्म करा आए...। इस बीच बगल में बैठे शख्स ने मुझसे बता दिया कि कटनी से कोई बारात बुक है....उन्होंने करीब पचास सीटें बुक कराई हैं....वो सीटें टीटीई डेढ़ सौ रूपये में बांट रहा है....इस बीच टीटीई साहब पास आए...मैंने उनसे दो सीट मांगी ..उन्होंने छुटते ही कहा 300 रूपये...।मैंने एक परिचित टीटीई का हवाला दिया, उनसे बात कराई तो उन्होंने इतनी रियायत दी कि बिना पैसे के मुझे एक सीट देने को राज़ी हुए.....लोगों की जेब पर डाका डालने वाला वो टीटीई ऐसे मुझे देख रहा था जैसे मैंने उसके पैसे चुरा लिए हों.....जब मैंने उसे कहा कि मेरी वेटिंग 6 और 7 नंबर की है तो वो कह रहा था कि सीट मैं एक ही दूंगा मुझे बाकी लोगों को भी देखना है...ऐसे बोला जैसे वो ट्रेन का टीटीई न हो, ट्रेन उसके बाप की हो, और इसका सारा सिस्टम उसकी रखैल हो.....। जिसे जैसे चाहे वो नचा सकता हो....... बहरहाल मैंने सीट लेने से मना कर दिया..मैंने उसका नाम पुछा तो उसने नाम नहीं बताया..उसने नेम प्लेट भी नहीं लगाया था....जब मैंने उससे शिकायत करने को कहा तो उसने उल्टा मुझे धमकी दी कि मैं तुम्हें चाहूं तो अभी अंदर करवा सकता हूं.....मैं उसकी गुंडागर्दी देखकर दंग रह गया।.....ये हाल सिर्फ उस टीटीई का नहीं है या इस घटना का भुक्त भोगी सिर्फ मैं नहीं हूं आप सब भी कभी न कभी इस तरह के वाकये से दो चार होते होंगे...कोई टीटीई से लड़ता होगा और ज्यादातर लोग नोट दे देते होंगे......। लेकिन लोगों के विरोध के बाद ये टीटीईयों का ये गोरखधंधा बदस्तूर चलता रहता है....ममता जी इस पर लगाम लगाने की व्यवस्था आप बजट में तो नहीं कर सकती लेकिन बजट से बाहर इन बेईमान टीटीयों पर लगाम कसिए......तीसरी समस्या है खान-पान की...ममता ने जी ने ऐलान कर दिया है कि खाने में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय व्यंजनों को जगह मिलेगी....और खाने की गुणवत्ता जांची जाएगी....लेकिन असल समस्या पैंट्री कार में मिलने वाला ऊंची कीमत पर घटिया खाना है..... पहले 10 रूपये में दो समोसे मिलते थे....लेकिन अब ये 15 रूपये का मिलने लगा है....। और समोसे के भीतर क्या होता है...सिर्फ आलू....साथ में लाल सॉस जैसा कुछ...जो दिखता तो लाल है..लेकिन न मीठा होता है न खट्टा.....। आप अंबिकापुर में पुलिस लाईन वाले राजेश स्वीट्स के समोसे खाईये या हल्दीराम के ।(इन दोनों जगहों से अच्छा समोसा कहीं और नहीं बनता) लेकिन फिर भी दोनों जगहों पर दो समोसे 10 रुपये में मिल जाएंगे....दोनों जगहों का ज़िक्र इसलिए कर रहा हूं कि यहां के समोसे ही सबसे बेहतर होते हैं....... इसी तरह सुबह नाश्ते में दो सूखे ब्रेड और कटलेट मिलता है..पच्चीस रुपये में....। ब्रेड को ब्रेड बटर कहते हैं लेकिन प्रयोगशाला में रिसर्च करवा लिजिए तब भी आपको बटर नहीं मिलेगा......। अब खाने की बात करते हैं....रेलवे का खाना माशाअल्लाह...पैसे आपसे लेंगे पैंतीस और साठ रुपये..लेकिन खाना इतना घटिया की..भूख थोड़ी कम लगी हो तो गले से नहीं उतर सकता...। चलिए अब आपको बताते हैं कि पैंतीस रूपये वाला खाना कैसे साठ रूपये वाला खाना बन जाता है..... पैंतीस रुपये वाले खाने का साठ रूपया इसलिए लिया जाता है क्योंकि इसकी सब्जी में तीन चार टुकड़े पनीर के डाले होते हैं.....पराठे की जगह लंबी पतली रोटी होती है जिसे ये लोग रूमाली रोटी कहते हैं...चावल में दो चार दाने जीरे के डाल कर जीरा फ्राई कहते हैं....और इस तरह हो जाती है स्पेशल थाली तैयार....हांलाकि कीमत आईआरसीटीसी की तय कीमत के मुताबिक है..लेकिन अव्वल ये रेट ज्यादा है और दूसरा निर्धारित गुणवत्ता का पालन नहीं होता.......
ममता जी पीने के पानी की समस्या भी बड़ी ज्यादा है..गर्मी के दिनों में पानी कहीं ठंडा नहीं मिलता......नागपुर और झांसी में तीन रुपये में ठंडा मिनरल वाटर एक बोतल मिलता है....बाकी स्टेशनों पर ऐसे स्टॉल खोलने की ज़रूरत है.... ममता जी एक और समस्या है ठूंसा गया साइड लोवर बर्थ...इस बर्थ से साइड की सीट पर बैठने वाले लोग ही नहीं हर कोई परेशान हो जाता है....एक तो नो यात्रियों का सामान बढ़ जाता है..ऊपर से अगर वेटिंग वाले भी बोगी में हों तो खुदा खैर करे..।...इसके अलावा सफाई रेलवे की एवरग्रीन समस्या है....। एक अगर बोगी पुरानी हुई तो उससे बदबू आती है...फिर कई डिब्बों में टॉयलेट काफी गंदा होता है और पानी की दिक्कत भी होती है....कभी पानी खत्म हो जाती है कभी टॉयलेट का पानी बोगी में बहने लगता है...हांलाकि ये समस्या रोज़मर्रा की नहीं होती है...पर ऐसी समस्या खड़ी तो इससे निपटने का इंतज़ाम होना चाहिए....। जैसे एसी बोगी में साफसफाई का ज़िम्मा एटेंडेंट के पास होता है ..वैसा ही एक अटेंजेंट स्लीपर में भी होना चाहिए........। इससे स्लीपर में साफसफाई रहेगी और यात्रियों की सुरक्षा भी बेहतर हो जाएगी....। इसके बदले आप प्रति यात्री पांच रूपये ज्यादा ले लें..तो न कोई यात्री नाराज़ होगा..न ही आपका वोटबैंक नाराज़ होगा..बल्कि उसे पांच रूपये देने में खुशी होगी...। ममता जी बजट में हमने तो आपकी बातें सुन लीं....अब आपकी बारी है...तनिक हमारी भी सुन लें...।एक आम आदमी