Monday, March 31, 2008
एक कातिल दो कसाई
खबर आई है कि देश के एक बड़े न्यूज़ चैनल के पूर्व कर्ताधर्ता एक दिन न्यूज़ रुम में पधारे.वहां काम करने वाले कर्मचारियों को अपनी गौरवगाथा सुनाई. ज़ाहिर है खुद कहानी सुना रहे हैं तो हीरो खुद को ही पेश करेंगे. उन महानुभाव ने बताया कि कैसे उन्होंने हिन्दी न्यूज़ चैनल से खबरों को हटाया,उसकी हत्या कराई.उन महानुभाव ने अपनी गौरव का बखान करने के लिए वो महानुभाव कर्मचारियों को तीन चार पहले फ्लैशबैक में ले गए, जब वो देश के एक दूसरे बड़े चैनल में संपादक थे.उन्होंने वहां जब काम छोड़ने का फैसला किया तो उन्हें रोकने के लिए वहां के सीईओ ने कहा कि तुम पागलपन कर रहे हो.यहां छोड़ने के बाद बर्बाद हो जाओगे. मिट्टी में मिल जाओगे.कोई नहीं पुछेगा तुम्हें न्यूज़ इंडस्ट्री मे.मत जाओ.क्यों खुदकुशी कर रहे हो.जाओगे तो मर जाओगे तुम. उसी दिन मैंने तय किया कि मैं हिन्दी चैनलों से न्यूज़ को मार दूंगा और यहां आकर मैंने यही किया. इसके लिए मैंने दो कसाई चुने. एक जो खबरों को झटके से मारता था.दूसरा जो उसे हलाल करता था और आज मैंनें इन दो कसाईयों की मदद से न्यूज़ की हत्या कर दी. और इसी से मैं आज इतना बड़ा खिलाड़ी बना.
Wednesday, March 12, 2008
ख़बरिया चैनल: क्राइम से एलियन्स तक
ज़माना तेज़ी से बदल रहा है.उससे तेजी से बदल रहा है हिन्दी चैनलों का चेहरा और उसका चरित्र. ज़्यादा दिन नहीं हुए, जब हिन्दी चैनलों पर बुलेटिन आया करते थे. राजनीति से लेकर दूसरी तमाम खबरे हुआ करती थीं. उसके बाद दौर आया क्राइम का. सारे चैनलों में होड़ मच गई, अपराधियों को स्टुडियो में बैठाने का तमाशा शुरु हो गया.आज का नंबर दो चैनल इसी तमाशे से नंबर दो के पायदान पर पहुंचा.इसके बाद के दौर में भूत प्रेतों और नाग-नागिन ने हिन्दी चैनलों पर कब्जा कर लिया.ज़्यादा दिन नहीं हुए आज का नंबर तीन चैनल की सबसे बड़ी पहचान के साथ ये ये नाग और भूत चिपके थे.आद टीवी चैनलों पर दूसरे ग्रह के जीवों यानि एलियन्स ने कब्जा कर रखा है.इस दौर में रिपोर्टर की ज़रुरत नहीं है.बेचारे सुबह से लेकर शाम त् ऑफिस में बैठते हैं और अपनी दिहाड़ी बनाते हैं.हिन्दी चैनलों को आज जरुरत है उन लोगों की जो यू ट्यब नामक वेबसाइट से माल निकाल कर अपना रैपर लगाकर बेच सकें.खैर,हम बात कर रहे हैं हिन्दी चैनलों के बदलते चेहरे की. सवाल ये उठता है कि आखिर खबरिया चैनलों में ये तमाशा क्यों ? दरअसल ये दौर पत्रकारों का नहीं टीवीकारों का है.जो छाती ठोंकर कहते हैं. हम समाचारों में झूठ दिखाएंगे ,दर्शक जो मांगेगा हम वो दिखाएंगे.ये उन लोगों की जमात है.जिन्हें न पत्रकारिता के मायने मालूम हैं न ही उसके प्रति कोई आस्था है.ये वो लोग हैं.जो पत्रकार इसलिए बन गए क्योंकि जिंदगी में कुछ नहीं बन पाए. इसलिए इनसे ये उम्मीद करना निरा मूर्खता है.लेकिन हैरत होती है उन लोगों का रुख देखकर जो स्थापित पत्रकार हैं,चैनलों के भाग्यविधाता हैं.वो भी इस खेल में शामिल हो गए हैं.उनका रवैया परेशान करता है और हैरान भी करता है.क्या कहेंगे कल, जब ये दौर खत्म हो जाएगा और पत्रकारिता का दौर लौट आएगा
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