Thursday, July 30, 2009

घरों में घुसकर गालियां देता टीवी



सुबह
सुबह मैंने अख़बार में एक ख़बर पढी .अक्षय कुमार और करीना कपूर स्टारर कंबख़्त इश्क़ को सेंसर बोर्ड ने ए सर्टिफिकेट दिया है क्योंकि अक्षय कुमार ने करीना को फिल्म में कुतिया और करीना ने अक्षय को कुत्ता कहा है.
रात को घर पहुंचा तो देखा मैंने टीवी पर एक शो देखा. एम टीवी का रोडीज. शो में जो कुछ दिखाया जा रहा था.वो काफी हैरान करने वाला लगा. जब मैंने ये कार्यक्रम देखा तब उस दिन का एपिसोड ख़त्म होने के कगार पर था. चंद पलों बाद किसी एक प्रतियोगी को बाहर होना था. प्रतियोगियों के वोट से एक लड़की बाहर हुई. लेकिन तभी इस लड़की की एक दूसरी लड़की से ज़ुबानी जंग छिड़ गई. इस जंग में दोनो लड़कियां एक दूसरे की इज़्जत तार तार करने पर आमादा थीं. दोनों की भाषा और लांछन लगाने का स्तर देखकर मेरी आंखें फटी की फटी रह जाती हैं. पहली दूसरी को वैश्या बता रही थी. तो जवाब में दूसरी, पहली से कपड़े उतार कर चेक करने को बोलती है कि वो लड़की है या नहीं. बात यहीं खत्म नहीं होती. दोनों एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए चरित्रहनन की हदें पार करती चली गईं. पहली कहती है कि दूसरी कितने बार अपने ब्वाय फ्रैंड के साथ सो चुकी है. दूसरी कहां पीछे रहने वाली थी, वो पहली को याद दिलाती है कि वो कितने लोगों के साथ सो चुकी है. आप ये मत सोचिएगा कि दोनों अंग्रेज़ी शब्द स्लिप का हिंदी सोना बोल रही थीं. दोनों ने ऐसे-ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया. जिसे कम से कम मैं तो नहीं लिख सकता.
दो अलग अलग मापदंड. एक तरफ कुत्ता और कुतिया व्यस्कों की मानी गई, जिसे बच्चे नहीं देख सकते. दूसरी तरफ-जो बात भारत के व्यस्क भी घर परिवार में नहीं बोल सकते ऐसी गालियां टीवी के ज़रिए हमारे घरों के बच्चों तक पहुंचाई जा रही है.
बहरहाल, टीवी देखने के बाद मैंने रोडीज़ के बारे में अपने दोस्त से बात की. उसने बताया कि इस रियलिटी शो में गालियों की भरमार रहती है. बिना गाली के कोई रोडीज़ नहीं बन सकता है. कहने को गालियां बोलते वक्त बीप लगा दिया जाता है, लेकिन ये बीप इस तरह लगाया जाता है कि बच्चे भी समझ जाएं कि कौन सी गाली बकी जा रही है
एडिटिंग से बीप का इस्तेमाल करके प्रतियोगियों को खुल्लमखुल्ला गाली बकने की छूट मिल जाती है. जैसे मां की गाली में ’मा’ सुनाई देता है फिर पीं बजता है फिर आखिरी का ‘द’ सुनाई देता है.... और जब लगातार गालियों की बौछार होती है, तो कई बार सब सुनाई देता है....।
मेरा दोस्त टीवी का दीवाना है...। उसने इस शो और ऐसे ही दूसरे शो के नंगेपन के बारे में तमाम बातें बताईं.....।उसने बताया कि जब शो के लिए प्रतियोगी सलेक्ट हो रहे थे...तो उनके चयन का एक आधार गाली थी...जो लड़की जितनी गंदी गाली देगी उसे उतने प्वाइंट्स मिलेंगे....। प्रतियोगियों के साथ चयन में तमाम बदतमीज़ियां हुईं। उन्हें जलील किया गया..।मारा पीटा गया...। यही नहीं शो में प्रतिभागी कुवांरे लड़के और लड़कियां ऐसी बोल्ड बातें करते हैं जो बात आधे हिंदुस्तानी पतियों ने अपनी पत्नियों से नहीं की होगी
जब मैंने हैरानी जताई कि फिर कैसे ये शो चल रहा है...इसे अब तक रोका क्यों नहीं गया....तो उसके जवाब ने एक बार फिर मुझे नाखून चबाने पर मजबूर कर दिया....। बोला कि एक चैनल बिंदास तो अपनी बिंदास छबि झाड़ने के लिए गालियों की झड़ी लगा देता है....चाहे कैसा भी कार्यक्रम हो.... हिंदी में डब अंग्रेज़ी फिल्मों हो या फिर महिलाओं की कुश्ती.....। मजाल है कि बिना पीं पीं (यानी गालियों ) के चल जाए....। उसने बताया कि कुछ समय पहले तक वो एक सीरियल देखा करता था....चल यार चिल मार....। वो बताता है कि इसका एक पात्र बात बात पर बहन की गाली देता है....।
कुछ समय पहले जब मैं रियेलिटी शो बिग बॉस सीज़न वन देखा करता था तो इसमें हिदायत दी गई थी कि गाली न दी जाए...लेकिन कुछ प्रतियोगी गाली देते थे...। फिर भी इसका इसका स्तर इतना घटिया और इसकी बारंबारता इतनी नहीं थी जितनी रोडीज की है....।
दरअसल ये शो और ऐसे चैनल दिमागी दिवालिपने के शिकार लोगों की पैदाइश हैं...वे दर्शकों को कुछ नया नहीं दे सकते...... इसलिए गाली गलौज और बेडरूम की प्राइवेट बातें वे प्रतियोगियों के ज़रिए दर्शकों तक पहुंचा रहे हैं.....। ताकि उनके शो को एक पहचान मिल सके और इससे पैदा होने वाली सनसनी दर्शक बटोर सके....। इन लोगों के पास इसके अलावा कोई चारा नहीं है....क्योंकि ये सभी आईडिया के स्तर पर कंगाल हैं...रोडीज का मुकाबला बिग बॉस और खतरों के खिलाड़ी जैसे रियलिटी शो से है...तो बिंदास का मुकाबला दूसरे चैनलों से है....। जिससे गुणवत्ता के आधार पर ये मुकाबला नहीं कर सकता....।
इसे बनाने वालों की दलील हो सकती है कि अगर आपको ये नहीं देखना तो आपके हाथ में रिमोट है इसे मत देखिए...तो बड़ा सवाल ये खड़ा होता है कि क्या मैं नहीं देखूंगा तो देश के कच्ची उम्र के बच्चे इसे नहीं देखेंगे....जब कुत्ते और कुतिया के संवाद वाली फिल्म देखने के लिए उन्हें अयोग्य माना जाता है तो फिर ये नान वेज गालियों वाला प्रोग्राम क्यों उन तक पहुंचाया जा रहा है.......क्या किसी मां बाप के लिए ये संभव है कि वो हमेशा अपने बच्चों को ऐसे कार्यक्रमों से दूर कर रखे......।और दूर रखने का रास्ता क्या होगा....क्या चौबीसो घंटों बच्चों पर नज़र रखी जाए या फिर उन पर नज़र रखने के लिए नौकर रखा जाए.....।
अगर ये दलील दी जाए गालियों को समाज का सच होती है और गालियां कहां नहीं दी जाती...लेकिन सवाल ये खड़ा होता है..कि क्या कहीं भी गालियों को अच्छी नज़र से देखा जाता है...। कितने पढ़े लिखे लोग ऐसे हैं जो अपनी मां बहन के सामने गाली गलौज करते हैं...और फिर ये नहीं भूलना चाहिए कि मीडिया समाज का सिर्फ आईना नहीं दिखता है..मीडिया को रास्ता भी दिखाता है...बच्चे ही नहीं बड़े भी मीडिया में दिखाई जाने वाली बातों का अनुसरण करते हैं...। मीडिया से काफी कुछ सीखते हैं...फिर क्या हमें गाली परोसने का हक है...गालियों की तरफदारी वही कर सकते हैं, ,जो नहीं चाहते कि समाज सुधरे, समाज में जो बुराईयां विद्यमान हैं वो ख़त्म हों....।
इन शोज़ और सीरियल का ही नतीजा है कि पढ़ने लिखने वाले लड़के अपने घरों में गाली दे रहे हैं...मां बाप परेशान हैं कि आखिर कैसे ये लत छुड़वाई जाए.......।
ऐसे कार्यक्रमों के लिए जितने दोषी इसे बनाने वाले निर्माता ज़िम्मेदार हैं...उतने ही ज़िम्मेदार है हमारी सो रही सरकार...आखिर इन सबको रोकने की ज़िम्मेदारी किसकी है......इसके लिए हमारा बुद्धिजीवी तबका भी कम दोषी नहीं है....छोटी छोटी बात के लिए ख़बरिया चैनलों को कोसने वालों की नज़र इस तरफ क्यों नहीं गई...अगर गई तो इसके खिलाफ कोई आवाज़ क्यों नहीं उठाई....क्या उन्होंने ये सोचने की कोशिश नहीं की कि हमारे समाज पर इसका कितना दुष्प्रभाव पड़ रहा होगा....क्या उनकी ज़िम्मेदारियां केवल खबरिया चैनलों को कोसने तक ही सीमित है......
आज़ादी और अभिव्यक्ति के नाम पर किसी को हमारे घर में घुस कर गाली गलौज सिखाने की इजाज़त नहीं है..इसलिए हम चाहते हैं कि इन बेहूदा कार्यक्रमों पर जल्द से जल्द रोक लगे.....हम इसे बर्दाश्त नहीं कर सकते....और हां...इसे हमारी पीड़ा समझने की गुस्ताख़ी कतई न समझें ये हमारा गुस्सा है...जो कहां से कब फूट जाए पता नहीं
।। एक आम आदमी ।।

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